SP Danced on Bhajan : वर्दी और आस्था के बीच फंसी मर्यादा…! भजन पर जमकर थिरकते SP भोजराम पटेल का VIDEO वायरल…यहां देखें

मुंगेली, 13 सितंबर। SP Danced on Bhajan : जिले के पुलिस अधीक्षक (SP) भोजराम पटेल इन दिनों एक वायरल वीडियो को लेकर सुर्खियों में हैं। सोशल मीडिया पर सामने आए इस वीडियो में वे एक धार्मिक कार्यक्रम के दौरान भजन ‘बांके बिहारी की देख जटा, मेरो मन होय लटा पटा’ पर भक्तिभाव से झूमते और थिरकते नजर आ रहे हैं। माथे पर चंदन और वर्दी में लिपटे एसपी की यह छवि जहां कई लोगों को भावुक कर रही है, वहीं दूसरी ओर इसे लेकर तीखी बहस भी छिड़ गई है।
समर्थन में उठी आवाजें
एसपी भोजराम पटेल के इस वीडियो को लेकर सनातन संस्कृति के समर्थक उनका समर्थन कर रहे हैं। उनका कहना है कि एक अधिकारी होने के बावजूद भोजराम पटेल ने सार्वजनिक रूप से अपनी आस्था जताई है, जो कि आज के समय में प्रेरणादायक है। समर्थकों का कहना है कि अधिकारी भी इंसान हैं और उन्हें भी धार्मिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेने का अधिकार है।
आलोचना भी तेज
वहीं आलोचकों का कहना है कि पुलिस वर्दी केवल एक ड्रेस नहीं, बल्कि अनुशासन, कर्तव्य और निष्पक्षता का प्रतीक होती है। वर्दी में सार्वजनिक रूप से भजन पर थिरकना पुलिस की पेशेवर छवि को कमजोर करता है। सोशल मीडिया पर यह सवाल भी उठाया जा रहा है कि, अगर यही काम किसी कांस्टेबल ने किया होता तो क्या उसे बख्शा जाता? एक यूज़र ने लिखा-“रामराज्य में कप्तान भी भक्तों के संग लटा-पटा हो रहे हैं। तो किसी ने तंज कसा, लगता है जिले में कानून-व्यवस्था इतनी दुरुस्त है कि कप्तान अब भजन मंडली संभाल रहे हैं।
कानूनी विशेषज्ञों की राय
बता दें कि, वर्दीधारी अधिकारी का इस तरह मंच पर नृत्य करना पुलिस आचार संहिता का उल्लंघन हो सकता है। महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में पहले ही वर्दी में रील या डांस करने पर सख्त प्रतिबंध है। उनका मानना है कि ऐसे वीडियो से जनता का पुलिस पर विश्वास कमजोर हो सकता है, खासकर तब जब आम पुलिसकर्मियों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाती रही हो।
क्या होगी कार्रवाई?
अब सवाल यह है कि क्या छत्तीसगढ़ पुलिस मुख्यालय या राज्य सरकार इस वायरल वीडियो पर कोई कार्रवाई करेगी? या यह मामला भी सोशल मीडिया पर थोड़ी चर्चा के बाद ठंडे बस्ते में चला जाएगा?
फिलहाल, राज्य स्तर पर इस वीडियो को लेकर कोई आधिकारिक बयान (SP Danced on Bhajan) सामने नहीं आया है। लेकिन सोशल मीडिया पर हो रही बहस यह जरूर संकेत देती है कि वर्दी और व्यक्तिगत आस्था के बीच संतुलन को लेकर अब एक नई सोच और स्पष्ट दिशा-निर्देश की जरूरत है।